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महान गणितज्ञ आर्यभट की जीवनी | Aryabhatta Biography In Hindi






महान गणितज्ञ आर्यभट की जीवनी – Aryabhatta Biography In Hindi

आर्यभट / Aryabhatta भारत के महान खगौलिय (khagoliya) और गणितज्ञ (Mathematicians) थे। अपनी खगोलिय खोजों के बाद उन्होंने सार्वजनिक घोषणा की कि प्रथ्वी 365 दिन 6 घंटे 12 मिनट और 30 सेकेण्ड में सूर्य का एक चक्कर लगाती है। उनकी इस खोज की देश भर में सराहना हुई और उन्हें प्रोत्साहन मिला।
आर्यभट 476 ईसा-पूर्व में कुसुमपुर (पटना) में जन्में और 550 ईसा-पूर्व में उनका निधन हुआ। 23 वर्ष की उम्र मेे उन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की। यह एक विलक्षण ग्रंथ है और संस्कृत में पद्यबद्ध है। इसमें 118 श्लोक है जो तात्कालिन गणित का संक्षिप्त विवरण है। आर्यभट के अनुसार प्रथ्वी एक महायुग में 1582237500 बार घुमती है।
आर्यभट ने गणित के नये-नये नियम खोजे। ऐसा प्रतित होता है कि वे शून्य का चिन्ह जानते थे। पाई का मान उन्होंने 3.1622 निकाला जो आधुनिक मान के बराबर ही है। आर्यभट ने बडी संख्याओं को संक्षेप में लिखने के लिए अक्षरांक विधी की खोज की, जैसे की 1 के लिए ’अ’, और 100 के लिए ’इ’ 10000 के लिए ’उ’ 10 अरब के लिए ’ए’ इत्यादि।
आर्यभट ने आकाश में खगोलिया पिण्ड की स्थिति के बारे में भी ज्ञान दिया। उन्होंने पृथ्वी के परिधी 24835 मिल बताई, जो आधुनिक मान 24902 मिल के मुकाबले बेहतरीन संभावित मान है। आर्यभट का विश्वास था कि आकाशीय पिण्डों के आभासी घुर्णन धरती के अक्षीय घुर्णन के कारण संभव है। यह सौरमण्डल की प्रकृति या स्वभाव की महत्वपूर्ण अवधारणा है। परन्तू इस विचार को त्रुटिपूर्ण मानकर बाद के विचारकों ने इसे छोड दिया था।
आर्यभट सूर्य, पृथ्वी की त्रिज्या के संबंध में खगोलिया गृहों की त्रिज्या देते है। उनका मत है कि चन्द्रमां तथा अन्य गृह सूर्य से परावर्तित प्रकाश द्वारा चमकते है। आश्चर्यजनक रूप से वह यह विश्वास करते हैं कि ग्रहों की कथाएं अण्डाकार है। आर्य भट ने सूर्य गृहण तथा चन्द्र गृहण के सही कारणों की व्याख्या की है , जबकि उनसे पहले तक लोग इन्हें गृहणों का कारण राक्षस राहु और केतू को मानते थे।
आर्यभट ने ज्योतिष के क्षेत्र में भी सबसे पहले क्रांतिकारी विचार लाये । आर्यभट पहले भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पृथ्वी अपनी दुरी पर घुमती है और नक्षत्रों का गोलक स्थित है। पौराणिक मान्यता के नुसार इसके विपरित थी। इसलिए बाद के वराहमिहिर, ब्रम्हगुप्त आदि ज्योतिषीयों ने इनकी इस सही मान्यता को भी स्वीकार नहीं किया।
आर्यभट विश्व की सृष्टि और इसके प्रलय चक्र में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने काल को अनादि तथा अनन्त माना है। वे निश्चित ही एक क्रांतिकारी विचारक थे। श्रुति, स्मृति और पुराणों की परंपरा के विरोध में सही विचार प्रस्तुत करके उन्होंने बडे साहस का परिचय दिया था। और भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वस्थ परंपरा स्थापित की।
आर्यभट ने अपने ग्रंथ में किसी ज्योतिषी, गणितज्ञ, या शासक का वर्णन नही किया। उनका आर्यभटीय नामक ग्रंथ भारतीय गणित और ज्योतिष का एक विशुद्ध वैज्ञानिक ग्रंथ है। उनके सम्मान में भारत ने अपने प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट रखा।
खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी और वायुमण्डलीय विज्ञान में अनुसंधान के लिए नैनिताल के निकट एक स्थान का नाम आर्यभट प्रक्षेपण विज्ञान अनुसंधान संस्थान रखा गया। और दूसरो के वैज्ञानिक द्वारा सन् 2009 में खोजी गई एक बेक्टिरिया की प्रजाति का नाम उनके नाम पर बेसीलस रखा गया।
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1 comment:

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